भगवान भोलेनाथ को देवों का देव कहा जाता है यह त्रिदेव है भगवान शिव जी के और भी बहुत नाम है जैसे महादेव भोलेनाथ शंकर महेश रुद्र नीलकंठ इत्यादि इनको तंत्र साधना में भगवान शिव को भैरव के नाम से भी जाना जाता है हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में भगवान शिवजी एक हैं वेद में इनको रुद्र के नाम से जाना गया है भगवान शिव इंसान की चेतना के अंतर्यामी है यानी इंसान के मन की बात वह पढ़ लेते हैं इनकी पत्नी देवी शक्ति है इनका नाम माता पार्वती है भगवान शिवजी के 2 पुत्र कार्तिकेय और भगवान गणेश जी हैं और इनकी एक पुत्री भी है जिसका नाम अशोक सुंदरी है भगवान भोलेनाथ का ज्यादा से ज्यादा समय योगी या ध्यान की मुद्रा में ही रहता है आप इनकी तस्वीरों या मूर्तियों में देख सकते हैं यह हमेशा ध्यान में ही लीन रहते हैं परंतु इनकी पूजा शिवलिंग और मूर्ति दोनों ही रूपों में होती है शिवजी के गले में आप हमेशा नाग देवता को देख सकते हैं और इनके हाथों में डमरू और त्रिशूल नजर आता है।
भगवान शिव जी ने अपने शरीर से देवी शक्ति की सृष्टि की है जो उनके अपने अंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी देवी शक्ति को पार्वती के रूप में जाना गया है और भगवान शिव को अर्धनारिश्वबर के रूप में जाना जाता है देवी शक्ति को प्रकृति गुणवती बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित माना गया है श्रीमद् देवी महापुराण के अनुसार भगवान शिव के पिता के लिए भी एक कथा है।
देवी महापुराण के अनुसार एक बार जब नारद जी ने अपने पिता ब्रह्मा जी से सवाल किया कि इस सृष्टि का निर्माण किसने किया है? आप ने भगवान विष्णु ने या फिर भगवान शिव जी ने, इन तीनों को जन्म किसने दिया है यानी आप तीनों के माता पिता कौन है तब ब्रह्मा जी ने नारद जी से त्रिदेवों के जन्म की गाथा का वर्णन करते हुए कहा कि देवी दुर्गा और शिव स्वरूप ब्रह्मा के योग से ब्रह्मा विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई है यानी प्रकृति स्वरूप दुर्गा ही माता है और ब्रह्मा यानी काल सदाशिव पिता है एक बार श्री ब्रह्मा जी और श्री विष्णु जी का इस बात पर झगड़ा हो गया कि ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं तेरा पीता हूं क्योंकि यह सृष्टि मुझसे उत्पन्न हुई है मैं प्रजापिता हूं इस पर विष्णु जी ने कहा कि मैं तेरा पिता हूं तू मेरी नाभि कमल से उत्पन्न हुआ है।
जब इन दोनों का झगड़ा हो रहा था तब सदा शिव ने विष्णु जी और ब्रह्मा जी के बीच में आकर कहा, है पुत्रों मैंने तुमको जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को दो कार्य संहार और तिरोगति दिए हैं मुझे वेदों में ब्रह्म कहा है मेरे पांच मुख हैं एक मुख से अकार (अ) दूसरे मुख से उकार (उ) तीसरे मुख से मुकार (म) चौथे मुख से बिन्दु (.) तथा पाँचवे मुख से नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं उन्हीं पाँच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर “ऊँ” बना है यह मेरा मूल मंत्र है।