सनातन धर्म मे में माह को दो पक्षों में विभाजित किया गया है:
- कृष्ण पक्ष
- शुक्ल पक्ष।
इसी प्रकार से वर्ष को भी दो अयनों में विभाजित किया गया है:
- उत्तरायण
- दक्षिणायण
संक्राति का अर्थ एवं सौरमास
- सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांतिकहते हैं. एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के मध्य का समय ही सौर मास है.
- इस प्रकार एक वर्ष में12 सूर्य संक्रांति होती हैं, परन्तु इनमें से मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति प्रमुख मानी जाती हैं।
मकर संक्रांति का अर्थ एवं महत्व
- मकर संक्रांति के दिन सेसूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ हो जाती है।
- मान्यता है कि इस दिन सेदेवताओं के दिन आरम्भ हो जाता है इसे कारण इस दिन को देवायन भी कहा जाता है।
- इस दिन सेदेवलोक के द्वार खुल जाते हैं, अतः घरों में मांगलिक कार्य भी संपन्न होने आरंभ हो जाते हैं।
- उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तोकुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती है या पुनर्जन्म के चक्र से उन आत्माओं को मुक्ति मिल जाती है।
- उत्तरायण के 6 मास के शुभ काल में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इसप्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता है और ऐसे लोग सीधे ही ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।
- जबकिदक्षिणायण में देह छोड़ने पर आत्मा को बहुत काल तक अंधकार का सामना करना पड़ सकता है।
मकर संक्रांति को मनाएं जाने की विधि
- मकर संक्रांति के दिनभगवान सूर्य की अराधना होती है।
- सूर्यदेव को जल, लाल फूल, लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, अक्षत, सुपारी और दक्षिणाअर्पित की जाती है।
- पूजा के उपरांत लोग अपनी इच्छा सेदान-दक्षिणा करते हैं, इस दिन खिचड़ी का दान भी विशेष महत्व रखता है।
मकर संक्रांति मनाये जाने की पौराणिक कथाएं
- यह माना जाता है किभगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं और शनि मकर राशि के स्वामी है।
- पवित्र गंगा नदी का भी इसीदिन धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।
- इसदिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर उनके सिरों को मंदार पर्वत में दबाकर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी अतः ये दिन को बुराइयों और नकारात्मकता को समाप्त करने का दिन माना जाता है
- महाभारत में पितामाह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्यागकिया था